और कितना गोल करेंगे।
संता (बंता से)- इतने खिलाड़ी क्यों फुटबॉल को लात मार रहे हैं?
बंता (संता से)- गोल करने के लिए।
संता- लेकिन बॉल तो पहले से ही गोल है और कितना गोल करेंगे।
संता (बंता से)- इतने खिलाड़ी क्यों फुटबॉल को लात मार रहे हैं?
बंता (संता से)- गोल करने के लिए।
संता- लेकिन बॉल तो पहले से ही गोल है और कितना गोल करेंगे।
संता (बंता से)-अरे यार, यह बता कि अक्ल बड़ी या भैंस?
बंता- रुक, सोचने दे जरा..(थोड़ी देर सोचने के बाद)
बंता- मुझे बेवकूफ समझा है क्या? पहले डेट ऑफ बर्थ तो बता दोनों के!
बंता का तबादला बेंगलूर कर दिया गया। कन्नड़ भाषा न आने के कारण वह लोगों से बातचीत करने में कठिनाई महसूस कर रहा था। लिहाजा वह एक बुक स्टोर पर गया और तीस दिन में कन्नड़ बोलना सीखें नामक पुस्तक की दो प्रतियां खरीदीं।
दुकानदार (बंता से)- दूसरी प्रति क्या अपने किसी दोस्त के लिए ले जा रहे है।
बंता (दुकानदार से)- नहीं दरअसल मैं सिर्फ पन्द्रह दिनों में ही कन्नड़ बोलना सीखना चाहता हूं...
संता (बंता से)-यार बंता मुझे चश्मा दिला दो मुझे दूर का दिखाई नहीं देता।
बंता (संता से)- बाहर चलो, वह क्या है?
संता- सूरज, अब और कितना दूर दिखेगा।
बंता पेड़ पर चढ़कर ऊपर बैठ गया।
संता (बंता से )- ऊपर क्यों आए ?
बंता- सेब खाने।
संता- यह तो आम का पेड़ है।
बंता- पता है, तभी तो सेब साथ लाया हूं।
घर गंदा पड़ा हुआ था और साफ-सफाई करने की बजाय बहू सजने संवरने मे लगी थी। यह देखकर सास झाडू लगाने लगी। बेटे संता ने उनसे कहा लाओ मां मैं झाडू लगा देता हूं।
मां ऊची आवाज में बहू को सुनाते हुए कहती हैं- अरे रहने दे बेटा, मैं ही लगा देती हूं।
यह सुनकर बहू मिसेज संता लिपस्टिक लगाते हुए बोली- अरे झगड़ते क्यों हो, काम बांट लो एक दिन बेटा झाडू लगा लेगा एक दिन मां लगा लेगी।