ज्यादा खुशी से मर न जाऊं!
पत्नी (पति से) - जब मैं मर जाऊंगी तो तुम क्या करोगे?
पति (पत्नी से) - मैं मर भी सकता हूं।
पत्नी - क्यों?
पति - क्योंकि कई बार इंसान ज्यादा खुशी मिलने से मर भी सकता है।
पत्नी (पति से) - जब मैं मर जाऊंगी तो तुम क्या करोगे?
पति (पत्नी से) - मैं मर भी सकता हूं।
पत्नी - क्यों?
पति - क्योंकि कई बार इंसान ज्यादा खुशी मिलने से मर भी सकता है।
पत्नी (पति से)- आज बस में कंडक्टर ने मेरी बेइज्जती की।
पति (पत्नी से)- क्यों? क्या हुआ?
पत्नी- मेरे बस से उतरते ही उसने कहा, अब तीन सवारियां इस सीट पर आ जाए।
पत्नी (पति से) - क्या आपको कभी यह ख्याल आया है कि मेरी शादी किसी और से हो जाती तो बेहतर होता?
पति (पत्नी से) - नहीं।
पत्नी - सच।
पति - हां, भला मैं दूसरे का बुरा क्यों चाहूंगा।
पति (पत्नी से) - मेरा कोई फोन आए तो कहना मैं घर पर नहीं हूं।
अचानक फोन की घंटी बजी, पत्नी ने फोन उठाकर कहा वो अभी घर पर ही है।
पति ने खीजते हुए पत्नी से कहा, मना किया था फिर क्यों कहा।
पत्नी ने कहा, वह फोन मेरे लिए था।
पत्नी (पति से) - तुम मेरे लिए क्या-क्या कर सकते हो?
पति (पत्नी से) - कुछ भी कर सकता हूं, अपनी जान भी दे सकता हूं।
पत्नी - इतने दिनों से सुन रही हूं, आज यह काम कर ही दो।
पति (पत्नी से) - जब मैं सूट पहनकर जाता हूं, सब्जी वाला सब्जी मंहगी देता है। मैला कुर्ता पहन कर जाता हूं तो सब्जी सस्ती देता है।
पत्नी (पति से) - तब तुम हाथ में कटोरी लेकर जाया करो, सब्जी मुफ्त मिल जाया करेगी।