गुरू जी नमस्ते! पहचाना..??
.
मैँ आपका शिष्य कल्लन बोल रहा हूँ।
.
''अरे ! कल्लन कैसे हो तुम ?? आज इतने सालो बाद
मेरी याद कैसे आ गई ?? .
...और मेरा फोन नम्बर कैसे मिल गया??''

{widget:social-share-button}

.
गुरूजी ! फोन नम्बर ढ़ुंढ़ना कौन सा मुश्किल था ?
जब प्यासे को प्यास लगती है तो जलस्रोत ढ़ुंढ़
ही लेता है। .
...दरअसल गुरू जी हमने एक नया रोजगार शुरू
किया है। ...और आपने बचपन मेँ कहा था की जब
भी कोई काम शुरू करना हमसे उदघाटन जरूर
कराना।
. ...तो हम अपने काम का उदघाटन आपसे
ही कराना चाहते है।
.
''अतिसुन्दर ! वत्स। बताओ कहाँ आना है उदघाटन
के लिये हमेँ ? ''
. गुरूजी ! आप पुराने खंडहर के पास चार लाख
रूपया लेके आ जाईये। ..
.
आपका 'छोटूवा' हमरे कब्जे मेँ है। आज से
ही 'अपरहण' का धंधा चालू किया तो सोचा की 'उदघाटन' आपके शुभ हाथो से ही हो।

 

{widget:facebook-comment}

 


Add comment